समता ही योग है : योग दिवस के शुभावसर पर
ध्यान कक्ष से कुल मानव जाति को दिया गया संदेश
योगा दिवस के शुभावसर पर गाँव भूपानी स्थित, सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा, अपने ही परिसर सतयुग दर्शन वसुन्धरा में स्थित ध्यान कक्ष, के प्रांगण में किया गया ‘योगा फॉर ह्यूमैनिटी – अडाप्टींग इक्वेलिटी‘ नामक कार्यक्रम का आयोजन।
समता ही योग है : योग दिवस के शुभावसर पर
ध्यान कक्ष से कुल मानव जाति को दिया गया संदेश
योगा दिवस के शुभावसर पर गाँव भूपानी स्थित, सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा, अपने ही परिसर सतयुग दर्शन वसुन्धरा में स्थित ध्यान कक्ष, के प्रांगण में किया गया ‘योगा फॉर ह्यूमैनिटी – अडाप्टींग इक्वेलिटी‘ नामक कार्यक्रम का आयोजन। इस कार्यक्रम में सैकड़ो की संख्या में सजनों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। कार्यक्रम के आरम्भ में वर्तमान कलुषित युग में ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि के स्कूल को खोलने की आवश्यकता व वहाँ से प्रसारित हो रहे मानवता के संदेश व सतयुगी नैतिकता आचार संहिता को आत्मसात् करने की महत्ता पर बल देते हुए, समत्व योग के बारे में जानकारी दी गई।
फिर यौगिग क्रियाएँ कराने के साथ-साथ सजनों को योग के शाब्दिक अर्थ से परिचित कराते हुए कहा गया कि योग का शब्दिक अर्थ है, मेल/मिलाप/संयोग/मिलन/जोड़ना आदि। समता का प्रतीक यह योग, सुरत और शब्द ब्रह्म के मिलाप का साधन है अथवा आत्मा-परमात्मा के सम्मिलन की अद्धैतानुभूति है तथा इस योग साधना का उद्देश्य है ब्रह्म यानि आत्म साक्षात्कार व शाश्वत एवं चिरंतन आनन्द की प्राप्ति। यह प्राप्ति करने हेतु ही मूलमंत्र आद् अक्षर यानि प्रणव मंत्र ओ३म के अजपा जाप द्वारा, चित्तवृत्तियों का निरोध कर यानि बहिर्मुखी वृत्तियों को सांसारिक विषयों से हटाकर अन्तर्मुखी बना, अपने वास्तविक स्वरूप में लीन करने का प्रयास किया जाता है ताकि हर मानव आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर, जीव, जगत व ब्रह्म के खेल को यथार्थता समझ, अपने जीवन काल में शास्त्रविहित् आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हुए, सत्य को धर्म संगत प्रतिष्ठित कर सके और निर्विकारी अवस्था में सधा रह सके और ‘ईश्वर है अपना आप‘ के विचार पर स्थिरता से बने रह, आत्मकल्याण कर सके। यहाँ आत्मिक ज्ञान के संदर्भ में प्रकाश डालते हुए कहा गया कि आत्मज्ञान अपने आप में कुदरती देन है व बाल अवस्था से इस ज्ञान को विधिवत् धारण करने पर ही मानव की वृत्ति, स्मृति, बुद्धि व स्वभाव सदा निर्मल अवस्था में सधा रह सकता है और वह उच्च बुद्धि, उच्च ख़्याल हो, सर्वविध् आत्मतुष्ट रह सकता है।
आगे सजनों को समझाया गया कि आत्मतुष्टि विचार, संयम, अभ्यास, वैराग्य, त्याग और एकाग्रचित्तता के बल पर जैसे-जैसे मूलमंत्र आद् अक्षर यानि ओ३म शब्द के अजपा जाप द्वारा मन को प्रभु में लीन रखने का प्रयास गहराता जाता है, वैसे-वैसे आत्मचेतना का जागरण होता है और मनुष्य का मन संकल्प मुक्त हो, सम अवस्था में स्थिर हो जाता है। परिणामत: अखंड शांति का अनुभव होता है और जीव अमरता का भान कर, परम संतोष प्राप्त कर लेता है। ऐसा होने पर अपनी हैसियत यानि आर्थिक योग्यता, सामर्थ्य और आवश्यकता अनुसार विचरने में ही प्रसन्नता व सुख का अनुभव होता है और इंसान अपने आहार-विहार व आचार-व्यवहार को मर्यादित एवं संतुलित अवस्था में साधे रख, जीवन की हर ऊँच-नीच में, तनावमुक्त व विकारमुक्त रहते हुए, धीरता से जीवनयापन करने की कला सीख जाता है। फिर संसार की कोई वस्तु मन को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती और मन कदाचित् किसी परिस्थिति में डगमगाता नहीं। आत्मस्वरूप में स्थित मन की यह निरुद्ध अवस्था ही सजनों योग कहलाती है। चंचलता से हीन, अहंकार शून्य इस सहज मानसिक स्थिति में सधे रहने पर सजनों उस इंसान के अन्दर, विवेकशीलता से सत् पदार्थों का ग्रहण करने की क्षमता विकसित हो जाती है और वह सर्वव्याप्त अपने सत्य स्वरूप से तादात्मय स्थापित कर, धर्म के निष्काम रास्ते पर चलते हुए, परोपकार कमा पाता है। कहा गया कि यही योग साधना यानि प्रणव मंत्र मूलमंत्र आद् अक्षर, ओ३म के संग अपना ख़्याल का ध्यानपूर्वक नाता जोड़, समता को साधने की अद्भुत महात्त है। इसी के द्वारा आत्मस्वरूप में स्थिति हो सकती है और सर्व-सर्व वही ब्रह्म ही ब्रह्म नज़र आ सकता है। अत: समता अपना कर एकता, एक अवस्था में आओ और समत्व योगी कहलाओ।
अधिक जानकारी के लिए ध्यान-कक्ष की वेबसाइट www.dhyankaksh.org या फिर टेलिफोन न० 8595070695 पर जाकर सम्पर्क करें।