October 17, 2025
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“पतलून” नाटक में दिखा आम आदमी का दर्द
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“पतलून” नाटक में दिखा आम आदमी का दर्द

पतलून नाटक के मंचन ने सभी दर्शकों को आम आदमी के अलग-अलग भावों से रूबरू करवाया। रविवार, 30 अप्रैल को दिल्ली के मुक्तधारा सभागार में मनीष जोशी “बिस्मिल” लिखित नाटक ” पतलून” का सफल मंचन किया गया। फोर्थ वाल प्रोडकशंस के बैनर तले फेलीसीटी थियेटर के सहयोग से इस नाटक का निर्देशन रीतिका मलहोत्रा ने किया।

नाटक “पतलून” मनीष जोशी ‘बिस्मिल’ द्वारा लिखित हिंदी नाटक है, जिसकी शुरुआत ज़िंदगी के ऐसे कैनवास से होती है, जहां पात्र अलग-अलग लक्ष्य लिए अपने सपनों के रंगों से कैनवास को रंगीन करने की बात शुरू होती है। नाटक का मुख्य किरदार “भगवान” भी औरों की तरह एक गांव से आया साधारण मनुष्य है, जिसे पचास साल शोषण झेल कर ज़िंदगी में एक मक़सद मिलता है। वह अपने सपने को पूरा करने के लिए असाधारण तरीके से मेहनत करता है, दुर्गम परिस्थितियों का सामना करता है और साथ ही ये सीख देता है कि चाहे जो हो अपने लक्ष्य से हर बार कहो “तुम मेरे हो…” और एक दिन उस लक्ष्य को, हकीकत में अपना बना लो …उसके लिए जियो, और एक दिन उसे हमेशा के लिए कमा लो।

यूं तो नाटक के मुख्य किरदार भगवान के सामने एक पतलून खरीदने की चुनौती आती है, लेकिन उसका ये सपना आकार लेने लगता है एक लड़की के रूप में। अपनें परिश्रम और आने वाली मुसीबतों के बीच उनसे लड़ता जूझता भगवान एक दिन अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है और ये साबित कर देता है कि विषम से विषम परिस्थिति भी एक बुलन्द व्यक्तित्व को नहीं डिगा सकती। इसके साथ ही यह नाटक एक और महत्वपूर्ण संदेश देता है या यूं कहें कि हमसे पूछता है कि क्या हमनें अपनी पतलून ढूंढनी शुरू कर दी..? क्या हमें वो मिल चुकी ..? या क्या अब भी ज़िंदगी का कैनवास कोरा है और शुरुआत करना बाकी है, और अगर है तो खुद को टटोलो और अपने सपने के लिए, अपनी पतलून के लिए पूरी हिम्मत के साथ, पूरे हौसले के साथ , गिरकर वापिस उठने की ताकत के साथ अपनी यात्रा शुरू करो।

शुरू में नाटक के किरदार भगवान का संघर्ष और एक घटना से उसकी दिशा हीन जिंदगी को मायने मिलना दर्शकों को हंसाता भी है ओर नाटक के अंत तक आते-आते उन्हें रूलाता भी है । नाटक के मुखय अतिथि राहुल बूचर जी ने नाटक ओर उसके पा‌त्रों की खूब सराहना की। सभागार दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। नाटक की कामयाबी दर्शकों के सिर चढकर यूं बोलने लगी कि सभी दर्शकगण अपनी-अपनी जगह खडे़ होकर नाटक के किरदारों का होंसला बढा रहे थे। सभागार तालियों की गडगडाहट से गूंजने लगा।

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