
फोर्थ वॉल प्रोडक्शंस द्वारा कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के सहयोग से आयोजित चौथे हरियाणा रंग उत्सव ज्योति संग स्मृति नाटक समारोह के तीसरे दिन जंगली भालू नाटक का मंच हुआ।
जंगली भालू रूसी लेखक एंटन चेखव की अंग्रेजी नाटक द बेयर का हिंदी अनुवाद है, जिसमें दिखाया गया कि जिंदगी जिंदादिली का नाम है और किसी के चले जाने से जिंदगी रूकती नहीं है। प्रदीप कुमार द्वारा निर्देशित इस नाटक की पात्र गुलगुल रानी एक जवान विधवा है, जो अपने मर चुके पति की वफ़ादारी में घर के अंदर बंद-सी हो चुकी है। उसका नौकर अशरफ़ बार-बार उसे कहने की कोशिश करता है कि ज़िंदगी रुकती नहीं, पर गुलगुल रानी अपने दुख में ही जीती है।
इसी शांति को तोड़ते हुए अचानक एक ग़ुस्से से भरा, कड़क और जंगली स्वभाव का आदमी भोला सिंह अपने उदार के पैसे लेने उसके घर आता है। पैसे ना मिलने पर भोला सिंह हंगामा शुरू कर देता है। धीरे-धीरे दोनों की लड़ाई रोमांटिक टेंशन में बदलने लगती है और आख़िर में दोनों एक दूसरे से अपने प्यार का इजहार कर देते हैं। नाटक के कलाकारों में प्राची सहगल, दीपक कुमार, दिवाकर दुबे, मंटू और देवांश सिंह शामिल थे।
