October 16, 2025
News MBR
अध्यात्म
Breaking News India

अध्यात्म

. 🌹 “अध्यात्म” 🌹

 

प्रश्न : अध्यात्म क्या है….?

 

हम सभी अध्यात्म अध्यात्म कहते हैं, परंतु यह अध्यात्म है क्या…?

 

आज मैं अध्यात्म के अर्थ के बारे में आपको विस्तार में बता रहा हूं ।

 

अध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, मनना और दर्शन करना अर्थात अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ होना ।

 

गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप अर्थात् जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है ।

 

“परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते “।

 

आत्मा परमात्मा का अंश है यह तो सर्विविदित है । जब इस सम्बन्ध में शंका या संशय, अविश्वास की स्थिति अधिक क्रियमान होती है तभी हमारी दूरी बढती जाती है और हम विभिन्न रूपों से अपने को सफल बनाने का निरर्थक प्रयास करते रहते हैं जिसका परिणाम नाकारात्मक ही होता है ।

 

ये तो असंभव सा जान पड़ता है-मिटटी के बर्तन मिटटी से अलग पहचान बनाने की कोशिश करें तो कोई क्या कहे… ? यह विषय विचारणीय है ।

 

अध्यात्म की अनुभूति सभी प्राणियों में सामान रूप से निरंतर होती रहती है । स्वयं की खोज तो सभी कर रहे हैं, परोक्ष व अपरोक्ष रूप से ।

 

परमात्मा के असीम प्रेम की एक बूँद मानव में पायी जाती है, जिसके कारण हम उनसे संयुक्त होते हैं किन्तु कुछ समय बाद इसका लोप हो जाता है और हम निराश हो जाते हैं, सांसारिक बन्धनों में आनंद ढूंढते ही रह जाते हैं परन्तु क्षणिक ही ख़ुशी पाते हैं ।

 

जब हम क्षणिक संबंधों, क्षणिक वस्तुओं को अपना जान कर उससे आनंद मनाते हैं, जब की हर पल साथ रहने वाला शरीर भी हमें अपना ही गुलाम बना देता है । हमारी इन्द्रियां अपने आप से अलग कर देती है यह इतनी सूक्ष्मता से करती है – हमें महसूस भी नहीं होता की हमने यह काम किया है ?

 

जब हमें सत्य की समझ आती है तो जीवन का अंतिम पड़ाव आ जाता है व पश्चात्ताप के सिवाय कुछ हाथ नहीं लग पाता । ऐसी स्थिति का हमें पहले ही ज्ञान हो जाए तो शायद हम अपने जीवन में पूर्ण आनंद की अनुभूति के अधिकारी बन सकते हैं । हमारा इहलोक तथा परलोक भी सुधर सकता है ।

 

अब प्रश्न उठता है की यह ज्ञान क्या हम अभी प्राप्त कर सकते हैं ?

 

हाँ ! हम अभी जान सकते हैं की अंत समय में किसकी स्मृति होगी, हमारा भाव क्या होगा ? हम फिर अपने भाव में अपेक्षित सुधार कर सकेंगे ।

 

गीता के आठवें अध्याय श्लोक संख्या आठ में भी बताया गया है :-

 

यंयंवापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।

तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भाव भावितः ।।8।।

 

अर्थात :-

“हे कुंतीपुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस- जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, उस- उस को वही ही प्राप्त होता है…? क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहता है ।”

 

एक संत ने इसे बताते हुए कहा था की सभी अपनी अपनी आखें बंद कर यह स्मरण करें की सुबह अपनी आखें खोलने से पहले हमारी जो चेतना सर्वप्रथम जगती है उस क्षण हमें किसका स्मरण होता है ? बस उसी का स्मरण अंत समय में भी होगा । अगर किसी को भगवान् के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ का स्मरण होता है तो अभी से वे अपने को सुधार लें और निश्चित कर लें की हमारी आँखें खुलने से पहले हम अपने चेतन मन में भगवान् का ही स्मरण करेंगे । बस हमारा काम बन जाएगा नहीं तो हम जीती बाज़ी भी हार जायेंगे ।

 

कदाचित अगर किसी की बीमारी के कारण या अन्य कारण से बेहोशी की अवस्था में मृत्यु हो जाती है तो दीनबंधु भगवान् उसके नित्य प्रति किये गए इस छोटे से प्रयास को ध्यान में रखकर उन्हें स्मरण करेंगे और उनका उद्धार हो जाएगा क्योंकि परमात्मा परम दयालु हैं जो हमारे छोटे से छोटे प्रयास से द्रवीभूत हो जाते हैं ।

 

मेरे ये विचार मानव- मात्र के कल्याण के लिए समर्पित है ।

 

******************************

संग्रहकर्ता एवं लेखक…. ✍🏻

संतों के दास संतदास रत्तेवाल ।

संस्थापक : “समस्त भारतीय संत समाज” © ।

+91 8685858885

*****************************

Related posts

दैनिक पंचांग : 3-मार्च-2022

Susmita Dey

प्रतिभा शर्मा को मिला बेस्ट अचीवर्स अवार्ड मैजिक बुक ऑफ रिकॉर्ड द्वारा

C P Yadav

मैजिक बुक ऑफ रिकॉर्ड द्वारा आयरन लेडी ऑफ इंडिया, आयरन मैन ऑफ इंडिया और आनरेरी डॉक्टरेट अवार्ड 2021 के किया गया सम्मानित।

C P Yadav

सतयुग दर्शन विद्यालय व सतयुग दर्शन संगीत कला केंद्र के संयुक्त तत्वाधान में किया गया नन्हें- मुन्नों की प्रतिभा खोज का आयोजन

C P Yadav

Bhagavad Gita Part of Gujarat School Syllabus

Susmita Dey

IPL 2021: CSK off to a flying restart after beating MI by 20 runs

newsmbr

Leave a Comment